Sunday, July 8, 2012

देखें कौन आता है ये फ़र्ज़ बजा लाने को ?


इसे मैंने पहली बार भूपिंदर सिंह के गायन में सुना था. दिल को छू गयी थी तब. बिस्मिल जैसे लोगों ने तब के युवाओं को प्रेरित करने के लिए ऐसे गीत लिखे थे. इस गीत की आखिरी लाइन है 'देखें कौन आता है ये फ़र्ज़ बजा लाने को'. अपने अपने समय में युवा पीढी की अपनी चुनौतियाँ होती हैं. तब की चुनौती थी देश को आजाद करना. अब की चुनौती है देश के युवाओं को शिक्षा, कौशल, सुविधाएँ, और मार्गदर्शन दे कर उनकी सफलता के आधार पर देश को विश्व स्तर का विकसित राष्ट्र बनाना. एक पुराना गीत है 'अब कोई गुलशन न उजड़े, अब वतन आजाद है'. हमारे यहाँ करोडो युवाओं के गुलशन बसाने की चुनौती है. विश्व भर में विकसित होने वाले देशों में शिक्षा ने ऐसे चमत्कार किये हैं. इसलिए भारत में भी उम्मीद है. ये लाइनें कहीं खो न जाएँ इसलिए इन्हें संजो कर यहाँ लिख रहा हूँ। मूल 'मुखम्मस' के लिंक पर मिला था।
हम भी आराम उठा सकते थे घर पर रह कर,
हमको भी पाला था माँ-बाप ने दुःख सह-सह कर ,
वक्ते-रुख्सत उन्हें इतना भी न आये कह कर,
गोद में अश्क जो टपकें कभी रुख से बह कर ,
तिफ्ल उनको ही समझ लेना जी बहलाने को !
अपनी किस्मत में अजल ही से सितम रक्खा था,
रंज रक्खा था मेहन रक्खी थी गम रक्खा था ,
किसको परवाह थी और किसमें ये दम रक्खा था,
हमने जब वादी-ए-ग़ुरबत में क़दम रक्खा था ,
दूर तक याद-ए-वतन आई थी समझाने को !
अपना कुछ गम नहीं लेकिन ए ख़याल आता है,
मादरे-हिन्द पे कब तक ये जवाल आता है ,
कौमी-आज़ादी का कब हिन्द पे साल आता है,
कौम अपनी पे तो रह-रह के मलाल आता है ,
मुन्तजिर रहते हैं हम खाक में मिल जाने को !
नौजवानों! जो तबीयत में तुम्हारी खटके,
याद कर लेना कभी हमको भी भूले भटके ,
आपके अज्वे-वदन होवें जुदा कट-कट के,
और सद-चाक हो माता का कलेजा फटके ,
पर न माथे पे शिकन आये कसम खाने को !
एक परवाने का बहता है लहू नस-नस में,
अब तो खा बैठे हैं चित्तौड़ के गढ़ की कसमें ,
सरफ़रोशी की अदा होती हैं यूँ ही रस्में,
भाई खंजर से गले मिलते हैं सब आपस में ,
बहने तैयार चिताओं से लिपट जाने को !
सर फ़िदा करते हैं कुरबान जिगर करते हैं,
पास जो कुछ है वो माता की नजर करते हैं ,
खाना वीरान कहाँ देखिये घर करते हैं!
खुश रहो अहले-वतन! हम तो सफ़र करते हैं ,
जा के आबाद करेंगे किसी वीराने को !
नौजवानो ! यही मौका है उठो खुल खेलो,
खिदमते-कौम में जो आये वला सब झेलो ,
देश के वास्ते सब अपनी जबानी दे दो ,
फिर मिलेंगी न ये माता की दुआएँ ले लो ,
देखें कौन आता है ये फ़र्ज़ बजा लाने को ?
“पंडित राम प्रसाद बिस्मिल”

No comments:

Post a Comment