कुछ ऐसे लम्हे रहे हैं मेरे जीवन में जब अभिव्यक्ति के लिए शब्द नहीं मिलते
'सारांश' फिल्म का यह गीत मुझे ऐसे में अक्सर याद आता है. इसके बोल मैंने ढूंढें पर मिले नहीं. सुन कर नीचे लिखा है. दो तीन त्रुटियाँ हैं शायद.
इसका संगीत अजीत वर्मन का है और बोल वसंत देव के.
अँधियारा गहराया,
सूनापन घिर आया,
घबराया मन मेरा,
चरणों में आया
क्यों हो तुम,
यूँ गुमसुम,
किरणों को आने दो
पत्थर की आँखों से,
करुणा को झरने दो
अँधियारा गहराया,
सूनापन घिर आया,
घबराया मन मेरा,
चरणों में आया
पत्तों तिनकों का
बना था घर मेरा,
ढह गया, बह गया
अब कहाँ बसेरा
भीगा है मन पाखी
मंजरी में पलने दो
सूनापन घिर आया,
घबराया मन मेरा,
चरणों में आया
ये उदासी, अगर, छाई है मेरे लिए
पीर की वाहनी, है बनी मेरे लिए
सह लूं मैं हर जनम
चन्दन वो पलने दो
अँधियारा गहराया,
सूनापन घिर आया,
घबराया मन मेरा,
चरणों में आया
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